ये शब्द नही
ये गीत नही
कोई धर्म रीति का ज्ञान नही
ये उस बालक के प्रश्न हैं
जिसके जीवन का कोई मान नही
मां क्यो रहती है तू सड़को पर
क्या तुझे किसी का डर नही
या तू भी है उस कोयल जैसी
जिसका अपना कोई घर नही।
Monday, May 3, 2021
माँ
Saturday, May 1, 2021
सुनो गौर से
सुनो गौर से वसुंधरा के
हृदय पीर की करुण कहानी
सारी सृष्टि विलख रही है
क्यों की तुमने ये मनमानी।
माटी
हम हैं भारत देश के वासी
भारत को नहीं भूलने वाले
आन की खातिर हँसते हँसते
हम फाँसी पर झूलने वाले।
एक पुकार पे सब आएंगे
तोड़े से भी नहीं टूटने वाले।
प्राण पखेरू भले उड़ जाए
माटी से नहीं छूटने वाले।
बदल रहा है मेरा भारत
बदल रहा है मेरा भारत
मेरा भारत बदल रहा है।
युगों युगों से जमा हुआ था
आज हिमालय पिघल रहा है।
गीत लिखूँ कि नगमें गाउँ
गीत लिखूँ कि नगमें गाउँ
तेरी यादों में खो जाऊँ,
तू झिलमिल सी जगमग जगमग
तेरी लौ में पिघला जाऊँ।।
रंगो की इस बहार में
रंगो की इस बहार में
इक रंग की कमी है।
वो रंग जिसमें तेरी
चाहत की नमी है।
अंबर भी लाल हो रहा
धरती भी गुलाबी है
यादों से तेरी दिल की
आज महफ़िल सजी है।
तेरे बिना तन्हाइयों के
संग संग हूँ मैं
रंगों की इस फुहार में
बेरंग ढंग हूँ मैं।
मेरी खुशी पे मुस्कुराने वाले
क्या जानें
इक मुस्कान के पीछे
कितने आँसुओं की हँसी है।
ख्वाब में कभी इक ख़्वाब
देखा था मैंने
एक हँसी आरजू को
दिल के पास देखा था मैंने।
पूरी न हो सकी जो हसरतें
तो गम नही
वो खुश हैं इसी में मेरे
जीवन की खुशी है।
अपने ग़म को तुमसे छुपा के रखती हूँ
अपने ग़म को तुमसे छुपा के रखती हूँ
इसलिए खुद को इतना सजा के रखती हूँ।
मैं तुम्हारी हूँ मेरा ग़म भी तुम्हारा न हो जाए
हर घड़ी ख़ुद से तुमको बचा के रखती हूँ॥
प्रिये तुम्हारे जाने से
टूट गया मन का इकतारा
प्रिये तुम्हारे जाने से
गाता हूँ पर दिल नही भरता
गीत तुम्हारे गाने से।
जाने कितने गीत लिखे
जाने कितने गीत लिखे
नगमें गाये जाने कितने
लेकिन तुम ना वापस आए
ना पूरे हो पाये सपनें।
ऐ मेरे मुल्क के लोगों
ऐ मेरे मुल्क के लोगों ये स्वीकार करो
मुश्किलों से मिली आज़ादी ऐतबार करो
ऐतबार करो तुम जरा विचार करो
वीर बलिदानों की विरासत पे न प्रहार करो।
उलझे लोग
कहीं भी जाऊँ गुल
दोस्ती के खिल जाते हैं
मुझे मेरे जैसे लोग
हर जगह मिल जाते हैं।
गरीबों के लिए ही बने हैं
सारे नियम कायदे
अमीरों के लिए सियासत के
होंठ सिल जाते हैं।
डिगते नहीं है जो
तमाम आंधियों की चोट से
वो किसी अपने की शातिर
फूंक से हिल जाते हैं।
कतरा कतरा रेशा रेशा
समझ सको तो ही बेहतर है
धागों में उलझे लोगों के
अक्सर तन छिल जाते हैं।