चार बरस
Wednesday, February 21, 2024
तन की चाह
क्या ये तन की चाह है
या चित्त की पुकार है
कि ख्वाब दर खयाल तुम
नजर में बस रहे हो किंतु
कण हृदय की पीर के
अश्रु में ढले नही हैं।
हाँ ये तन की चाह है
चित्त की पुकार नही
कि ख्वाब दर खयाल जल
रहा है मन सुमन किंतु
चाह के शुष्क खर
अब तलक जले नही हैं।
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